रचनाकार/साहित्यकार समाज का रक्षक, मार्गदर्शक व हितचिंतक : डॉक्टर डी आर विश्वकर्मा
कहते हैं कि साहित्य समाज का दर्पण और समाज के भावनाओं का प्रतिबिंब होता है। मनुष्य ही साहित्य का लक्ष्य है। मनीषी कहते हैं कि, जो वाग्जाल मनुष्य को दुर्गति हीनता और पर मुखपेक्षिता से पाठक को, बचा न सके,जो उसकी आत्मा को तेजोद्दीप्त न बना सके, जो पाठक के हृदय को, परदुखकातर और संवेदनशील न बना सके उसे साहित्य नहीं कहा जा सकता। "ध्वन्यालोक" काव्य शास्त्र के रचयिता आनन्द वर्धन ने लिखा है कि...
अपारे काव्य संसारे, कविरेक: प्रजापति।
यथास्मै रोचते विश्वम् तथा विपरिवर्तते ।।
अपार काव्य संसार का कवि प्रणेता होता है, इस काव्य संसार की रचना उसकी रुचि के अनुसार होती है, वह जैसा चाहता है उसमें परिवर्तन कर लेता है।
इसीलिए कहते हैं कि कवि काव्य जगत का स्वम् सृष्टा,दृष्टा और अनुभंता होता है।काव्य कला, आन्तरिक एवं स्वप्रसूत है।
“कीरत के वीरवा कवि हैं, इनको कबहु मुरझाने न दीजै” लेकिन कुछ मनीषी कहते हैं कि” निरंकुशा हि कवय: यानि कवि कभी कभी निरंकुश भी हो जाता है।
कवि किसी काल, देश और अंतस् में कभी भी प्रवेश कर सकता है,उसके संवेदन दृष्टि के व्यायत आभोग में यह सम्पूर्ण सृष्टि और त्रिकाल समा जाता है,इसीलिए कहते हैं कि…
जहाँ न पहुँचे रवि,वहाँ पहुँचे कवि।प्रसिद्ध कवि नीरज ने लिखा है,
आत्मा के सौन्दर्य का शब्द रूप है काव्य।
मानव होना भाग्य है, कवि होना सौभाग्य ।।
हृदय और मस्तिष्क से सत्य की उपासना करने वाला रचनाकार सर्वथा शुद्ध बुद्ध होता है। ईशवास्योपनिषद् में ईश्वर को भी परिभू-स्वयंभू तथा काविर्मनीषी कहा गया है क्योंकि वह भी रचनाकार ही है जैसे कवि गण और साहित्यकार।
अतः साहित्यकारों को कभी भी भौड़े गीत और साहित्य का सृजन नहीं करना चाहिए। वैसे देखें तो अक्षर को ब्रह्म की संज्ञा दी गई है “वाग्वे ब्रह्म “ अगर शब्दों की सात्विक साधना की जाय तो शब्द ही ब्रह्म हैं शब्द सार्व भौतिक है सर्वकालिक हैं और सार्व भौमिक होते हैं शब्द ही अनुदित होकर लोक भोग्य भी बनते हैं,तो हम सभी को कभी भी अश्लील साहित्य की रचना नहीं करनी चाहिए।
कवि कमनीय कल्पना कारु व रमणीय काव्य कारु भी होता है, वह अनेकधा सीमाएँ छोड़ता है। तोड़ता है। शब्दों को गढ़ता है। तोलता है। मोलता है। कभी व्याकरण की बाँह पकड़ता है, तो कभी शब्द कोषों की राह पकड़ता है।कभी उन्मुक्त भाव तरंगिणी में अवगाहन करता है। यदि हम भारतीय साहित्य के सर्वोत्कृष्ट ग्रंथों का अवलोकन करें तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि साहित्यकार की दिव्य दृष्टि और सार्वभौम चेतना ने कभी भी देश काल और धर्म के बंधनों को स्वीकार नहीं किया।कवि रचनाकार अपने जीवन के व्यापक अनुभवों को साहित्य के माध्यम से उसने ऐसी सक्षम वाणी प्रदान की जो न तो समय के झंझावात के आघात से कम्पित होती है और न आयु की जीर्णता के साथ मन्द पड़ती है। हमारे साहित्यकारों ने यह कार्य अत्यन्त सफलता पूर्वक किया है और देश में सदियों तक अक्षुण्ण बनी रहने वाली भावनात्मक एकता इसी का प्रतिफल है। आज के पापाचार अत्याचार अनाचार के माहौल में रचनाकार साहित्यकारों का दायित्व और अधिक हो गया है। आज के समय में जो चल रहा है,वह ज्ञातव्य तो है ही,लेकिन जो भी प्रभाव मानव की सुख शांति पर पड़ रहा है, उसका शमन सरस्वती के साधकों की लोक मंगलकारी रचनाओं द्वारा ही संभव हो सकता है। ये रचनाएँ ही भ्रमित पथिकों को अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाती है।
रचनाकारों और साहित्यकारों को चाहिए कि वे धर्म जाति और भाषा की खाइयों को पाटकर जन जन के विचारों को उदार बनाने का प्रयास करें। लेखकों और साहित्यकारों का दृष्टिकोण विशुद्ध मानवतावादी हो और वे अपने साहित्य में “सत्यम् शिवम् सुंदरम् “की प्रतिष्ठा करें। क्योंकि साहित्यकार समाज का रक्षक, मार्गदर्शक, समाजहित में लीन, मनीषी, शब्दों का ब्रह्मा, मठ गढ़ सब कुछ तोड़ने फोड़ने वाला, सर्वहारा में जोश भरने वाला, शक्ति का आराधन कर जीत दिलाने वाला होता है। लेखक ने रचनाकारों के सन्दर्भ में एक बहुत ही अच्छी रचना लिखी है आइए उस पर भी दृष्टि पात करें-
रचनाकार लोक जगत में
है समाज हितकारी।
शब्दों का वह ब्रह्मा होता,
शब्दों से है यारी ।।
मानस के चिंतन से वह
सर्जन करता भारी ।
ज्ञान जगत में उसकी रचना,
गंगा सम उपकारी ।।
गढ़, मठ तोड़े फोड़े वह,
ज्ञान शक्ति ले साधन।
कमजोरों में जान फूकता,
करे शक्ति आराधन ।।
मंचों से, ज्योतिकांत बन,
करता कभी ठिठोली।
उसकी नाभि शक्ति पुंज है,
मुख निसृत वह बोली।।
भाषा का वह पूजक होता,
शक्ति सिद्ध अधिकारी।
प्रत्युत्पन्न मति है उसका,
दिव्य शक्ति अवतारी ।।
लेखक: पूर्व जिला विकास अधिकारी, कई पुस्तकों का प्रणयनकर्ता, शिक्षाविद, कई राज्य स्तरीय सम्मानों से विभूषित वरिष्ठ साहित्यकार, वरिष्ठ प्रशिक्षक, ऑल इण्डिया रेडियो का नियमित वार्ताकार,मोटिवेशनल स्पीकर,दो सामाजिक संस्थाओं का पदाधिकारी भी है;जिसके नाम से काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के शिक्षा संकाय के शोध छात्रों को डॉक्टर डी आर विश्वकर्मा बेस्ट पेपर अवार्ड दिया जाता है।