सोनभद्र
मन की आवाज़ और परमात्मा पर विश्वास होना जरूरी है
एक बुढ़िया बड़ी सी गठरी लिए चली जा रही थी। चलते-चलते वो थक गई थी। तभी उसने देखा कि एक घुड़सवार चला आ रहा है। उसे देखकर बुढ़िया ने आवाज दी- अरे बेटा! एक बात तो सुन।
घुड़सवार रुक गया, और उसने पूछा- क्या बात है माई?
बुढ़िया ने कहा- बेटा! मुझे उस सामने वाले गांव में जाना है। मैं बहुत थक गई हूं। यह गठरी उठाई नहीं जाती। तू भी शायद उधर ही जा रहा है। यह गठरी घोड़े पर रख ले, तो मुझे चलने में आसानी हो जाएगी।
उस घुड़सवार ने कहा- माई! तू पैदल है और मैं घोड़े पर हूं। गांव अभी बहुत दूर है। पता नहीं तू कब तक वहां पहुंंचेगी। मैं तो थोड़ी ही देर में पहुंच जाऊंगा। वहां पहुंंचकर क्या मैं तेरी प्रतीक्षा करता रहूंंगा?
यह कहकर वो चल पड़ा। कुछ ही दूर जाने के बाद उसने अपने आप से कहा- तू भी कितना मूर्ख है। वो वृद्धा है, ठीक से चल भी नहीं सकती और क्या पता उसे ठीक से दिखाई भी देता हो या नहीं। तुझे गठरी दे रही थी। संभव है उस गठरी में कोई कीमती सामान हो। तू उसे लेकर भाग जाता तो कौन पूछता। चल वापस, गठरी ले ले।
वो घूमकर वापस आ गया और बुढ़िया से बोला- माई! ला अपनी गठरी। मैं ले चलता हूं, और गांव में रुककर तेरी राह देखूंंगा।
बुढ़िया ने कहा- ना बेटा! अब तू जा, मुझे गठरी नहीं देनी।
घुड़सवार ने कहा- अभी तो तू कह रही थी कि ले चल, और अब मैं ले चलने को तैयार हुआ तो गठरी नहीं दे रही। ऐसा क्यों? यह उल्टी बात तुझे किसने समझाई है?
बुढ़िया मुस्कराकर बोली- उसी ने समझाई है जिसने तुझे यह समझाया कि माई की गठरी ले ले। जो तेरे भीतर बैठा है, वही मेरे भीतर भी बैठा है। तुझे उसने कहा कि गठरी ले और भाग जा और मुझे उसने समझाया कि गठरी न दे, नहीं तो वो भाग जाएगा। तूने भी अपने मन की आवाज सुनी और मैंने भी सुनी।
------ तात्पर्य ------
यदि हमें अपने गुरु/सत्गुरु या परमात्मा पर पूर्ण विश्वास है , तो कोई भी हमारा नुकसान नहीं कर सकता है।
लेखक- आचार्य गोविन्द प्रसाद पाण्डेय "ध्रुव जी"
-हिन्दुस्तान जनता न्यूज की रिपोर्ट
मन की आवाज़ और परमात्मा पर विश्वास होना जरूरी है
एक बुढ़िया बड़ी सी गठरी लिए चली जा रही थी। चलते-चलते वो थक गई थी। तभी उसने देखा कि एक घुड़सवार चला आ रहा है। उसे देखकर बुढ़िया ने आवाज दी- अरे बेटा! एक बात तो सुन।
घुड़सवार रुक गया, और उसने पूछा- क्या बात है माई?
बुढ़िया ने कहा- बेटा! मुझे उस सामने वाले गांव में जाना है। मैं बहुत थक गई हूं। यह गठरी उठाई नहीं जाती। तू भी शायद उधर ही जा रहा है। यह गठरी घोड़े पर रख ले, तो मुझे चलने में आसानी हो जाएगी।
उस घुड़सवार ने कहा- माई! तू पैदल है और मैं घोड़े पर हूं। गांव अभी बहुत दूर है। पता नहीं तू कब तक वहां पहुंंचेगी। मैं तो थोड़ी ही देर में पहुंच जाऊंगा। वहां पहुंंचकर क्या मैं तेरी प्रतीक्षा करता रहूंंगा?
यह कहकर वो चल पड़ा। कुछ ही दूर जाने के बाद उसने अपने आप से कहा- तू भी कितना मूर्ख है। वो वृद्धा है, ठीक से चल भी नहीं सकती और क्या पता उसे ठीक से दिखाई भी देता हो या नहीं। तुझे गठरी दे रही थी। संभव है उस गठरी में कोई कीमती सामान हो। तू उसे लेकर भाग जाता तो कौन पूछता। चल वापस, गठरी ले ले।
वो घूमकर वापस आ गया और बुढ़िया से बोला- माई! ला अपनी गठरी। मैं ले चलता हूं, और गांव में रुककर तेरी राह देखूंंगा।
बुढ़िया ने कहा- ना बेटा! अब तू जा, मुझे गठरी नहीं देनी।
घुड़सवार ने कहा- अभी तो तू कह रही थी कि ले चल, और अब मैं ले चलने को तैयार हुआ तो गठरी नहीं दे रही। ऐसा क्यों? यह उल्टी बात तुझे किसने समझाई है?
बुढ़िया मुस्कराकर बोली- उसी ने समझाई है जिसने तुझे यह समझाया कि माई की गठरी ले ले। जो तेरे भीतर बैठा है, वही मेरे भीतर भी बैठा है। तुझे उसने कहा कि गठरी ले और भाग जा और मुझे उसने समझाया कि गठरी न दे, नहीं तो वो भाग जाएगा। तूने भी अपने मन की आवाज सुनी और मैंने भी सुनी।
------ तात्पर्य ------
यदि हमें अपने गुरु/सत्गुरु या परमात्मा पर पूर्ण विश्वास है , तो कोई भी हमारा नुकसान नहीं कर सकता है।
लेखक- आचार्य गोविन्द प्रसाद पाण्डेय "ध्रुव जी"
-हिन्दुस्तान जनता न्यूज की रिपोर्ट