सोनभद्र
जनता दल यूनाइटेड के जिलाध्यक्ष एवं बहुअरा साधन सहकारी समिति लि0 के संचालक/ डायरेक्टर संतोष पटेल एड0 ने सोमवार को मुख्यमंत्री व जिलाधिकारी समेत अन्य लोगों को ई- मेल द्वारा भेजे एक पत्र के माध्यम से जनपद में यूरिया खाद को लेकर स्थानीय प्रशासन की असफलता व मनमानी कार्रवाई से उपज रहे हालात के संबंध अवगत कराया।
श्री पटेल ने बताया कि इन दिनों जनपद सोनभद्र में यूरिया खाद/उर्वरक की विकट समस्या के कारण सहकारी समितियों पर पिछले वर्षों की तुलना में अत्यधिक खाद आने व बंट जाने के बाद भी किसानों के बीच खाद के लिए हाहाकार मचा हुआ है। जो निम्न प्रकार से हैं-
01. सहकारी समितियों से नकद खाद का वितरण होने से समिति के सदस्य किसानों को पर्याप्त मात्रा में खाद नहीं मिल पा रहा है। जिसके कारण खाद के लिए लगातार मारामारी मची हुयी है। जबकि सरकारी आंकड़ों के हिसाब से समितियों के लक्ष्य से ज्यादा खाद बांट दी गयी। फिर सवाल यह है कि सारी खाद गयी कहां? जिसके कारण खाद की समस्या बरकरार है।
02. सहकारी समितियों से नकद खाद बंटने के कारण ऐसे लोग समितियों से खाद ले गए जो किसी भी समिति के सदस्य नहीं हैं। इससे स्पष्ट है कि जब समिति का गैर सदस्य समिति से खाद ले जाएगा तब निश्चित ही समिति के सदस्यांे को खाद की समस्या तो बनी रहेगी।
03. किसी भी समिति का सदस्य बनने से ऐसे तमाम किसान बचते भी नजर आते हैं। जिसका प्रमुख कारण है- समिति के कार्यालय/ गोदाम से किसान के घर की भौगोलिक दूरी। आमतौर पर व्यावहारिक तौर पर देखने को मिलता है कि नियमानुसार किसान का गांव जिस सहकारी समिति के क्षेत्र में आता है वह समिति उनके घर से काफी दूरी पर होती है। जहां वह व्यावहारिक तौर पर सदस्य बनना नहीं चाहते हैं। और जहां सुविधानुसार बनना चाहते हैं अर्थात् जिस समिति के कार्यालय/ गोदाम से किसान का घर काफी नजदीक होता है, वहां पर सैद्धांतिक तौर पर किसान को यह कहकर समिति का सदस्य नहीं बनाया जाता है कि आपका गांव इस सहकारी समिति के क्षेत्र में नहीं आता है।
04. साधारण शब्दों में कहें तो किसान की सुविधानुसार समिति का सदस्य बनाया नहीं जाता है। जिसका परिणाम है कि व्यावहारिक समस्याओं के कारण किसान सैद्धांतिक समितियों का सदस्य बनता नहीं है। जिसका परिणाम यह होता है कि सरकारी रिकार्ड में सहकारी समितियों की सुविधाओं का किसान को लाभ नहीं मिल पाता है। जबकि व्यावहारिक रूप से वह लाभ पाने के लिए अनैतिक एवं नियम विपरीत कार्यों को भी करने को बाध्य हो जाता है। जिसका परिणाम यह है कि वर्तमान समय में गैर सदस्य भी समिति से खाद पाने के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार है। जिसकी आड़ में एवं अपनी कमियों को छिपाने की मंशा से संबंधित अधिकारीगण जिलाधिकारी महोदय को भी भ्रमित कर मनमानी तरीके से व्यवस्था का संचालन करा रहे हैं।
05. इसी कड़ी में यह भी स्वाभाविक सा प्रश्न है कि ऐसे किसान जो किसी समिति के सदस्य नहीं हैं, क्या वे विगत वर्षों में खाद नहीं प्रयोग करते थे? यदि करते थे तो कहां से प्राप्त करते थे? इसका सीधा सा जवाब है कि खुले बाजार में खाद बेचने वाले तमाम दुकानदारों से खरीद कर अपनी आवश्यकता की पूर्ति करते थे। फिर ऐसा क्या हुआ कि अचानक से इस वर्ष खाद की इतनी बड़ी समस्या पैदा हो गयी और खुले बाजार में खाद बिकनी ही बंद हो गयी। इसका सिर्फ एक लाइन का जवाब है कि, ‘‘जिला कृषि अधिकारी की नाकामी एवं कर्तव्यहीनता।’’
06. प्राइवेट दुकानदारों ने खाद मंगाना एवं बेचना ही बंद कर दिया जिला कृषि अधिकारी की मनमानी के कारण। जिसका कारण यह है कि सोनभद्र जिले में जितने भी प्राइवेट दुकानदार हैं वे सब के सब फुटकर व छोटे दुकानदार हैं। अर्थात् खाद के थोक विके्रता रैक प्वाइंट पर यानि मिर्जापुर में हैं, जहां से सोनभद्र के दुकानदारों को खाद मिलती है। अब सवाल यह उठता है कि जब थोक विके्रता ही महंगे दामों पर खाद बेचेगा तब फुटकर दुकानदार कैसे और क्यांे कम दाम पर खाद किसान को देगा।
07. जहां तक प्रति बोरी यूरिया के रेट की बात है तो वर्तमान में व्यावहारिक तौर पर प्रत्येक समिति पर किसानों को 270 रू0 प्रति बोरी खाद का वितरण किया जा रहा है और जिला प्रशासन तथा कुछ किसान भी चाहते है कि इसी रेट में फुटकर दुकानदार भी किसान को यूरिया खाद बेचें। जबकि हकीकत यह है कि लगभग 300 रू0 प्रति बोरी यूरिया खाद थोक विके्रता ही बेच रहे हैं। ऐसे में यह स्वाभाविक एवं व्यावहारिक है कि रास्ता खर्च एवं गाड़ी भाड़ा इत्यादि के बाद कुछ लाभांश के बाद दुकानदार कम से कम 315-20 रू0 प्रति बोरी तो बेचेगा ही। किंतु ऐसे स्थानों पर जिला प्रशासन तुरंत ही किसानों के बीच दुकानदारों से जबरदस्ती 270 रू0 प्रति बोरी खाद का वितरण करा देता है। जिससे दुकानदार को काफी आर्थिक क्षति उठानी पड़ती है और साथ ही साथ किसान पर विभागीय एवं कानूनी कार्रवाई भी कर दी जाती है।
08. ऐसे में उक्त दोहरी मार से बचने के लिए दुकानदार खाद की बिक्री ही बंद कर दिए हैं। जबकि कायदे से तो ‘‘जिला प्रशासन एवं जिला कृषि अधिकारी की वाहवाही एवं उनके कार्यों की सराहना तब होती जब रैक प्वाइंट के थोक विक्रेताओं पर नकेल कसते और नियमानुसार सही रेट में खाद की बिक्री कराते।’’ तब न तो फुटकर दुकानदार मारे जाते और न ही किसान। किंतु यहां हालत यह है कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे। सबसे आसान है आम एवं छोटे दुकानदारों पर विभागीय कार्रवाई करना एवं प्राथमिकी दर्ज कराना अथवा दुकानदारों के यहां मौजूद 100-200 बोरी खाद को खरीद रेट से भी कम/सस्ते दाम पर जबरदस्ती बंटवा देना। इसी के साथ- साथ सहकारी समितियों पर भी गैर सदस्यों/ किसानों को भी जबरदस्ती खाद का वितरण करा देना। चाहे सदस्य किसान को खाद मिले या न मिले। अगर यहीं स्थिति बनी रही तो सदस्य किसान भी समितियों से अपना हिस्सा निकालकर समिति की सदस्यता रद्द करा लेंगे। क्योंकि सदस्य बने रहने का क्या फायदा जब बाहर के लोग ही खाद लेते जाएंगे। वहीं दूसरी तरफ जब सारे दुकानदार खाद बेचने से मना कर देंगे, तब जिला प्रशासन या जिला कृषि अधिकारी किसानों को किस प्रकार से खाद व्यवस्था दे पाएंगे। यह एक अत्यंत ही विचारणींय एवं ज्वलंत समस्यात्मक प्रश्न है। उक्त के साथ ही अग्रलिखित बिंदुओं पर भी ध्यान दिए जाने की जरूरत है।
09. प्रत्येक समितियों पर लघु, सीमांत एवं बड़े किसान भी समिति के सक्रिय सदस्य होते हैं। जहां तक धान की फसल में खाद डालने की बात है। औसतन लगभग सभी किसान अपने खेतों में एक सी मात्रा में ही खाद को डालते हैं। ऐसे में अब सवाल यह उठता है कि जिला प्रशासन की अव्यावहारिक मौखिक आदेशों के तहत उदाहरण के तौर पर 01 एकड़ वाला किसान 04 बोरी खाद पाता है, जबकि 10 एकड़ खेत वाला किसान एवं 20 एकड़ वाला भी किसान अधिकतम 10 बोरी ही खाद पाता है। इसके साथ ही एक कड़वा सच यह भी है कि मध्यम व बड़े किसान मात्र कुछ बोरी खाद के लिए लाइन में खड़े भी नहीं हो पाते हैं। ऐसे में मध्यम एवं बड़ी जोत वाले किसानों की खाद के अभाव में कैसे खेती होगी। यह भी एक अत्यंत ही गंभीर एवं विचारणींय प्रकृति का प्रश्न है।
10. विगत दिनों एक और गंभीर बात सामने आयी है कि सहकारी समितियों के लगभग आधा दर्जन सचिवों के खिलाफ जिला कृषि अधिकारी की अव्यावहारिक संस्तुति पर जिलाधिकारी महोदय द्वारा प्राथमिकी दर्ज कराने का आदेश पारित कर दिया गया। जिसकी सच्चाई कुछ इस प्रकार से है कि कृषि निदेशक ने दिनांक 28 अपै्रल, 2020 को जारी एक आदेश में उत्तर प्रदेश के समस्त जिला कृषि अधिकारियों से कहा है कि कोविड-19 के दृष्टिगत ‘‘आधारबेस्ड उर्वरक सेल्स विद्आउट बायोमैट्रिक अथेंटिकेशन’’ के अनुसार कार्रवाई हो। वर्तमान में सहकारी समितियों पर हो रही खाद की जबरदस्त मारामारी के कारण तमाम किसान जो समिति के सदस्य भी नहीं हैं और जिला प्रशासन के मौखिक आदेशों के क्रम में भीड़ में आकर खाद लेकर चले गए। अब यहां व्यावहारिक समस्या यह आयी कि समिति पर जिस दिन खाद आयी, उसी दिन समिति से खाद बिक भी गयी। किंतु सैद्धांतिक रूप से उक्त खाद समिति पर खाद बिकने के दो- तीन दिन बाद आयी। जोे पाॅश मशीन के अनुसार खाद का स्टाॅक खड़ा है। जबकि समितियों पर एक बोरी भी खाद शेष नहीं है। ऐसे में खाद बिकने के दो-तीन दिन बाद समिति सचिवों को पाॅश मशीन में खाद की आमद एवं खारिजा भी करने जैसा कार्य करना पड़ा है। ऐसे में यह स्वाभाविक एवं चुनौतीपूर्ण ऐसा कार्य है जिसमें मानवीय भूल की संभावना से कत्तई भी इंकार नहीं किया जा सकता है। और यहीं हुआ कि कुछ मानवीय भूलों के कारण आधा दर्जन समिति सचिवों के खिलाफ जिला कृषि अधिकारी की संस्तुति पर जिलाधिकारी महोदय द्वारा प्राथमिकी दर्ज कराने का आदेश जारी कर दिया गया। यहां पर जिला कृषि अधिकारी ने अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए सीधे तौर पर जिलाधिकारी महोदय को दिग्भ्रमित करने का काम किया है। जिसका परिणाम यह निकला कि आधा दर्जन समिति सचिव न केवल विभागीय निलंबन का शिकार हुए अपितु अपराधियांे की तरह न्यायालयों का चक्कर लगा रहे हैं। उक्त कार्रवाई से यह कत्तई सिद्ध नहीं हो जाता है कि उक्त सचिवगण किसान विरोधी कार्यों में संलिप्त रहे हैं। अपितु सच यह है कि संबंधित उच्चाधिकारियों की मनमानी एवं कर्तव्यहीनता की चपेट में अत्यंत ही छोटे कर्मचारी होने के कारण पथभ्रष्ट सिस्टम की भेंट (बलि) चढ़ गए।
11. यदि इसी प्रकार जिलाधिकारी महोदय पथभ्रष्ट अधिकारियों की बातों से दिग्भ्रमित होकर मनमानी कार्रवाई करते रहे तो निश्चित ही बहुत जल्द अत्यंत छोटे कर्मचारियों में भयाक्रोश एवं आम किसानों व जनता में जनाक्रोश को बढ़ने से रोकना मुश्किल हो जाएगा।
ऐसे में जनता दल यूनाइटेड के जिलाध्यक्ष एवं बहुअरा साधन सहकारी समिति लि0 के संचालक/ डायरेक्टर श्री पटेल ने संबंधितों से आग्रह किया है कि भविष्य को ध्यान में रखकर अविलंब उपरोक्त बिंदुओं के क्रम में सहकारी समितियों में किसानों को भौगोलिक सुविधानुसार सदस्यता प्रदान कराने, मध्यम एवं बड़े किसानों को जोत के अनुसार यूरिया मुहैया कराने, फुटकर खाद बेचने वाले आम
दुकानदारों को सही मूल्य पर खाद उपलब्ध कराने, आक्रोशित किसानों एवं अधिकारियों के बीच अत्यंत ही दबावपूर्ण परिस्थितियों में कार्य कर रहे सहकारी समिति के सचिवों पर जिला कृषि अधिकारी के दिग्भ्रमित करने पर जिलाधिकारी महोदय द्वारा करायी गयी प्राथमिकी पर तत्काल रोक लगवाए जाने की आवश्यकता है। जिससे कि अन्नदाता किसानों व आम जनता को आगामी दिनों में राहत मिल सके।
- गौतम विश्वकर्मा की रिपोर्ट
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