भारतीय संस्कृति में जिसकी कोई जाति नही, उसकी कोई पहचान नही।
आदरणीय,
सामाजिक साथियों!
आजकल जाति जनगणना की खूब चर्चा हो रही है, ऐसे में कोई जाति छिपाये अक्लमंदी नही...
क्या आप बता सकते है कि भारतीय समाज में ऐसा कोई व्यक्ति है जिसकी कोई जाति नही?
किसी महान विद्वान ने कहा है कि,
जिस देश, जाति मे जन्म लियो,
बलिदान उसी पर हो जाओ।।
जाति ही हमारी असली पहचान है।
जाति का शाब्दिक अर्थ है- *विशिष्ट गुणो को धारण करना और अपने पीढियो मे स्थानांतरित करना।*
जैसे-लोहे के कार्य करने वाले लोहार।
चमड़े का कार्य करने वाले चमार।
दूध दुहने वाले अहीर बार बनाने वाले नाई..
कर्मकांड करने वाले पंडित।
अस्त्र चलाने वाले क्षत्रिय।
व्यवसाय करने वाले बनिया..ईत्यादि।
उपरोक्त परिभाषा मे सभी,मानव शरीर धारण किए है,सिर्फ अलग-थलग गुणो को धारण करने से उनकी जाति भिन्न हो गई।
फिर *जाति* की वकालत क्यो नही करनी चाहिए।
वर्तमान भारत सरकारे भी अधिक जनसंख्या वाले समाज की जाति आधारित जनगणना कराने हेतु उत्साहित है,तो क्या हम सब सरकार और संविधान के नियमो से पीछे हट जाए।
भारतीय संविधान मे ही विभिन्न जातियो का उल्लेख है,क्या हम सब उनसे मुक्त हो सकते है?
सच तो यह है कि,
*जिसकी कोई जाति नही।*
*उसकी कोई पहचान नही।।*
इसलिए,
*हमारी जाति (विश्वकर्मा) ही हमारी असली पहचान है,जिसके लिए हमे जीना- मरना चाहिए।*
भारतीय परिवेश मे जाति गणना से पीछे न रहे और बढ़चढ़कर अपनी जाति के कालम मे *विश्वकर्मा* शब्द अंकित करते हुए अपने भावी पीढी की *विश्वकर्मा संस्कृति* को मजबूत बनाए।
*🙏🏻जय श्री विश्वकर्मा प्रभु🙏🏻*
श्री राजेश्वराचार्य जी महाराज।
(पीठाधीश्वर एवं कथावाचक)
विश्वकर्मा संस्कृति पीठ,काशी।
वाराणसी,उत्तर प्रदेश।
संपर्क सूत्र-8840155008
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संपादकीय/ जाति