प्रभु श्रीराम --
कमलवत चरणों की वंदना करोड़ों बार,
सृष्टि के संचालक,मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम।
भक्तों के कष्ट संहारक,जगत के सदा उद्धारक,
कलियुग में नौका पार करे,उनका ही नाम।
अयोध्या में जन्म लिए,धरती को धन्य किए,
राजा दशरथ गृह खुशी की भरमार थी।
माता कौशल्या मनमाफिक दान दे रही थी,
समस्त देवी,देव पर कृपा अपरंपार थी ।
उदित गुरु वशिष्ठ का परम सौभाग्य था,
साक्षात बाल रूप में शिष्य बने थे ईश्वर ।
जिनकी कृपा मात्र भक्त को मुक्ति देती,
अलौकिक ,प्रतिभावान साक्षात परमेश्वर।
पिता की आज्ञा मान,अरण्य किए प्रस्थान,
जनकसुता,भ्राता लक्ष्मण भी साथ निभाए।
माता कैकेई का आभार माने बार- बार,
धरती के उद्धार हेतु मां का सहयोग पाए।
रक्षा किए ऋषि-मुनियों के हवन,यज्ञ की,
राक्षसों के क्रूर कृत्य से उनको बचाया था।
रावण धर छद्म वेश मां सीता को जब हर लिया,
बंदरों संग चढ़ाई कर, लंकापति को हराया था।
हे प्रभु धरती पर आज भी,आपका प्रताप दिखे,
आपकी महिमा अनंत,अमर ,अविनाशी है।
जब तक सूर्य,चन्द्र , ग्रह ,नक्षत्र विद्यमान सब,
प्रत्येक भक्त की आँखें,तुम्हारे दर्शन को प्यासी हैं।
कवि - चंद्रकांत पाण्डेय,
मुंबई, महाराष्ट्र,