दोषारोपण से बचना (कविता)

दोषारोपण से बचना  (कविता)
                 
दोष आरोपण से मित्रो!बढ़ती कोई साख नहीं।
गलती अपनी छुपाने से बनती कोई बात नहीं ।।

दोष खोजने से हम स्वम्,चक्रव्यूह में फसते हैं ।
आदत ऐसी बन जाती है,छिद्रान्वेषण करते हैं।।

सफल चाहते होना तो,प्रिय दोषारोपण से बचना।
मार्ग के अवरोधों को बस,विश्लेषित करते रहना।

बाधक जो भी आत्म प्रगति में,आओ ढूढ़ निकाले ।
ख़ुद की कमियों करें दूर,और मेहनत करना ठाने ।।

हूनर तो,ऐसे वीर सारथी का ही वरण करता है।
निष्ठा संग पूर्ण लगन से,श्रम जो करता रहता है।।

दृढ़ प्रतिज्ञ हो,हिम्मत से,जो आगे को बढ़ता है।
भाग्य प्रेयसी का वह ताज,अपने सिर मढ़ता है।।

अनवरत,कड़ी मेहनत है,सफलता का मूल मंत्र।
दूर भगाये वह निश्चित ही,दुर्दिन के सारे षड्यंत्र ।।

यदि चाहते यश कीर्ति तो,दोषारोपण से बचना।
गलती अपनी पहचान कर,दुबारा से मत करना।।

रहना दूर,नकारात्मकता से,करना मत मनमानी।
पाना है यदि लक्ष्य,बन्धुवर,श्रम ही एक निशानी।

ऐसा जब व्यक्तित्व बनेगा,तो विजय श्री पाओगे।
यश व मान प्रतिष्ठा सबही,अपने घर में लाओगे।।

अच्छे सोच से बढ़ता प्रतिपल,ऊर्जा का भण्डार ।
रोम रोम होता है पुलकित,सपने होते हैं साकार ।।

सर्जक: डॉ डी आर विश्वकर्मा,
सुन्दरपुर वाराणसी।

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