कविर्मनिषी, रचनाकार
रचनाकार, लोक जगत में,
है; समाज हितकारी।
शब्दों का वह ब्रह्मा होता,
शब्दों से, है यारी ।।
मानस के चिंतन से होता,
उसका सर्जन भारी ।
ज्ञान लोक में उसका सर्जन,
गंगा सम उपकारी ।।
गढ़ मठ तोड़े फोड़े वह,
ज्ञान शक्ति ले साधन ।
कमज़ोरों में जान फूंकता,
करे शक्ति आराधन ।।
मंचों से, ज्योति कांत बन,
करता कभी ठिठोली ।
उसकी नाभि शक्ति पुंज है,
मुख निसृत वह बोली ।।
भाषा का वह पूजक होता,
शक्ति सिद्ध अधिकारी ।
प्रत्युत्पन्न मति है उसका,
दिव्य शक्ति अवतारी ।।
रचनाएं उसकी चमकाती,
और परिष्कृत करती।
ज्ञान बढ़ाकर, मान दिलाती,
ऊर्जा मन में भरती ।।
काविर्मनीषी भी, ईश्वर है,
ज्ञानवान जन कहते ।
सत्याचरण से, सर्जक भी
शुद्ध बुद्धि को गहते ।।
रचनाकार: डॉक्टर डी आर विश्वकर्मा
सुन्दरपुर,वाराणसी-05
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