इंतजारी : DR Satya Prakash Pandey

इंतजारी : DR Satya Prakash Pandey 
सरकारी दफ्तरों में पहले किसी भी काम के लिए इंतजार करना होता था. कोई फाइल बाबू बढ़ाता तो उसमें जानबूझकर अनजाने में ऐसी पेंच लगा देता कि सारी टेबल घूमने के बाद फाइल उसी के टेबल पर वापस आती बिना किसी फाइनल ऑर्डर के. अब के ज़माने में भी ऐसा होता होगा, लेकिन सरकारी कामकाज में पहले से सुधार हुआ है. 

पिछले 2010 से मतलब पंद्रह वर्ष पहले एक फाइल बनी जिससे NFTHM केंद्र के 17 स्टाफ (पहले 21 थे) को बेहतर तनख्वाह grade pay देने के लिए रास्ता सुझाया गया. बड़ा जोर बना आशा भी बनी कि BHU अपने यहां किसी को मजबूर आधा चौथाई वेतन पर क्यों रखना चाहेगी, लेकिन उस समय पता नहीं क्या हुआ कि बात दबा दी गयी. एक दो साल फाइल आगे पीछे निदेशक, रजिस्ट्रार, rector, VC के यहां घूमती रही. Government फाइल को देखकर प्रपोजल मांगती रही लेकिन पता नहीं ऐसा क्या हुआ कि फाइल गायब हो गयी. 2010 में NFTHM को पूरी योजना बना कर फाइल गायब करा दिया गया. निश्चित ही कुछ न कुछ झूठे आधार बनाए गए होंगे जिसके आधार पर "pay grade" तनख्वाहें किसी भी Staff Nfthm को नहीं मिलने दिया गया. 

2011 में Department of Science and Technology, Govt of India ने BHU से इस केंद्र के बारे पूछ कर सुझाव दिया कि इस तरह से स्टाफ के संग दुर्व्यवहार ठीक नहीं जबकि Govt ट्राइबल के लिए बहुत महत्वपूर्ण भूमिका में BHU को मान रही है, तब पता नहीं क्या सोच कर BHU फिर केंद्र को ठीक से चलाने के लिए UGC के पास पूछने गयी कि क्या उसकी permission है, लेकिन BHU की मंशा गोपनीय दस्तावेज को दबा कर फाइल रोकने की थी क्योंकि जब UGC ने भी NFTHM को चलाने को approval दे दिया तब BHU ने स्टाफ को grade लागू करने की बात रोककर उसे 2008 की स्थिति को बयान किया जबकि 2010 में DST ने grade pay के लिए सहमति दे दी थी. UgC ने कई पत्र में DST के term condition से payment करने को बोला मगर BHU ने grade वाला approval DST का दबा कर रखा. बाबू लोगों ने फाइल बढ़ाने का खर्च नहीं लिया लेकिन कोई हल भी नहीं निकला. आशा बहुत थी कि UGC के approval के बाद BHU अपने स्टाफ को बंधुआ मजदूरी नहीं कराएगा मगर हुआ उल्टा. कैसा प्रयोग रहा कि BHU UGC 2013 में मिल कर स्टाफ को पूरा वेतन नहीं लगने दिए जबकि फाइल को हर 15 दिन पर भेजा जाता रहा. ऐसा तो नाटक फिल्म में भी न देखने को मिले जैसा BHU ने NFTHM स्टाफ के संग किया. हर सबूत स्टाफ के पक्ष में क्योंकि सभी कमेटी स्टाफ को grade देने के लिए सहमत हो चुकी थी लेकिन कोई बाबू फाइल खर्च शायद "लाखों" में चाहता था, वह जानबूझकर कर ये नहीं लिखा कि BHU इसे करना चाहता है और DST ने इसे लागू करने की मंशा दिखाई थी अन्यथा UGC अरबों रुपये बांट रही थी उसे NFTHM स्टाफ को पूरी तनख्वाहें देने में कोई अड़चन क्यों होती. 

आपको ताज्जुब होगा कि BHU और UGC आज भी Staff को grade सेलरी देने के लिए फाइल 2025 में भी बढ़ा रहे हैं और उसे आज तक approval लेने का ड्रामा चल रहा है. स्टाफ के कितने सारे लोग नौकरी छोड़ दिए, कुछ बिना permanent हुए retire हो गए लेकिन स्टाफ को हिम्मत देने के लिए, उपहास करने के लिए लोग हाल चाल पूछ लेते हैं. "आपका क्या हुआ?" Staff के परिवार वालों ने अब कोई उम्मीद नहीं रखी क्योंकि स्टाफ का पूरा वेतन मिलना और स्वाति नक्षत्र की बूंद का इंतजार दोनों एक समान है.

आप को ताज्जुब होगा कि 2010 से 2025 तक ऐसे 100 प्रपोजल अधिकारी बनाए लेकिन स्टाफ की तनख्वाहें एक रुपये नहीं बढ़ी. महंगाई और विकास भारत में चाहे जितना हुआ BHU के IMS को चाहे AIIMS का दर्जा मिला लेकिन NFTHM के स्टाफ को एक सिक्के का विकास नहीं किया जा सका. ऐसा खेल तो शायद किसी ठेके पर रखे कर्मचारियों के संग भी न हो लेकिन NFTHM के संग हो रहा है. 

कोई बाबू लाखों की चाह भले रखे लेकिन उसके फाइल बढ़ाने के बाद पिछले 15 साल में जो रेपो बना दिया है इस फाइल का कि कोई कर्ज भी नहीं दे रहा कि स्टाफ रिश्वत देकर किसी ऑफिस में खड़े हो जाएं ( पीछे ऐसी कोशिश करने वालों को सफ़लता मिली उनका काम BHU बिना किसी के पूछे दहाड़ के कर दिया).

लोग कहेंगे कि राजा रामचंद्र का मंदिर अयोध्या का बना है तो आपका NFTHM CENTRE का बिल्डिंग और तनख्वाह भी मिलेगा लेकिन अब तो सारी मशीनें भी तोड़ फोड़ कर ताला लगा दिया गया BHU के द्वारा इतने समय में क्योंकि 17 साल किसी काम के लिए कम नहीं होते. मोदी सरकार में तो उधर से approval होता है और इधर पैसा सीधा कर्मचारियों के account में आता है. एक पैसा घूस नहीं खर्च होता फिर NFTHM को ऐसा क्या दिक्कत?

इतने लंबे इंतजार के बाद किसी को भी शक होगा कि मिलने लायक रहता तो आपको जरूर दिया गया होता निश्चित ही कोई बहुत बड़ी कमी होगी तभी तो नहीं मिला. लेकिन सच बस इतना ही है कि DST ने शुरुआत में BHU से इसकी मंशा को जानना चाहा कि ये चला पाएंगे या नहीं और तीन साल चलाने के बाद इसको permanent चलाने के वादे के स्तर 7 करोड़ 5 लाख दिया था. जैसे ही BHU ने अपनी मंशा चलाने की दिखाई और स्टाफ को जॉइन कराया, DST ने grade के लिए फाइल मंगाई लेकिन बाबूगिरी के कारण NFTHM को फसा दिया गया. 

जांच तो होनी नहीं क्योंकि कौन किसकी जांच करेगा? कोई एक आदमी जिम्मेदार तो है नहीं? इसलिए बस य़ह एक कहानी है NFTHM! मैंने हल्का सा हवाला दिया है तारीखों का जबकि पूरा लिखने में तो फिर मुझे सालों लग जाएगा. 

वर्तमान में जो अधिकांश बाबू हैं वो कहते हैं कि मेरे हाथ में होता तो आज कर देते! मगर य़ह काम आपके नीचे और उपर के अधिकारियों के कारण रुका हुआ है. Scientist की पोस्ट असिस्टेंट प्रोफेसर के समतुल्य join के समय ही होती है. लेकिन आज 17 साल के बाद भी इसको स्वीकार करने में BHU के लोग असफल हैं. 
लोग कहते हैं कि चोरी नहीं होती लेकिन मेरे लिखे प्रपोजल पर कितने पेटेंट यही के प्रोफेसर करा लिए और किसी में नाम तक नहीं डाला. 
क्या इस केंद्र जो NFTHM के नाम से ट्राइबल मेडिसिन का काम BHU में सेंट्रल इंडिया को प्रतिनिधित्व कर रहा है उसको बंद कर देना चाहिए? क्या इतने सालों की झूठी आशा जो स्टाफ को फाइल भेज भेज कर दी गयी उसे समाप्त कर देना चाहिए? क्या इतने साल जीवन के यहां के लोग लौटा सकते हैं? क्या बच्चों को परवरिश करने में जो असुविधा हुई और जो उनका विकास होता उसे यहां के लोग अपनी गलती मान कर भरपाई कर सकते हैं?

आज प्रोफेसर Dube को मरे भी 2 साल हो गये. 2023 में उनके chamber में सारी फाइल बंद कर उनके पुनः जिवित होने का इंतजार यहां के लोग कर रहे हैं लेकिन ट्राइबल सेंटर को कमाई का अड्डा बनाए हुए हैं!

मुझे बाबू लोगों को जिम्मेदार नहीं कहना चाहिए लेकिन अन्य किसी को कहने से BHU की गरिमा को ठेस लग जाएगी लेकिन अब बात य़ह कही जा रही है कि 2014 में ऐसी स्थिति को हल करने का निवेदन लेकर यदि मैं Hon'ble Highcourt नहीं गया होता तो BHU 2014 में ही इस केंद्र को या तो बंद कर देता या permanent कर देता!

मैं इस बात को मानता हूँ कि 2014 और 2017 में मैंने Hon'ble Highcourt को approach किया कि भाई इस फाइल भेजने लौटने का चक्कर कब तक झेला जाए! आखिर कुछ तो जिम्मेदारी कोई ले!
मगर बेशर्मी की हद तब हो गई जब कोर्ट पूछ रही है कि क्या मंशा है आपके अधिकारी कि तो University का वकील, UGC का वकील,  MHRD का वकील "instructions" नहीं आया बोलकर भाग जा रहे सुनवाई से. सोचिए जिस केंद्र को चलाने की जबरदस्त कोशिश फाइल में आपने की हो और grade देने के फाइल भेजी हो तो क्या आप कोर्ट के पूछने पर झूठ बोल सकते हैं?

लेकिन कोर्ट भी दस साल से इंतजार कर रही है! मुझे लगता है कि कोर्ट यूनिवर्सिटी के पक्ष में निर्णय देना चाहती है कि केंद्र को permanent कर दिया जाए लेकिन स्टाफ को बाहर निकाल दिया जाए! न्यायालय में जिसके साथ अन्याय हुआ हो उसको कोई relief थोड़े मिलती है! ऐसा लगता है कि अन्याय University के साथ ही हुआ है क्योंकि ऐसी भोली University कोई और तो है नहीं 17 परिवार को बंधक बना कर 17 साल से सेवा कराने के बाद यूनिवर्सिटी की साधना पूरी नहीं हुई है. अभी भी फाइल का खेल जारी है. 

मैं किसको दोषी कहूँ मेरा भाग्य इस फाइल में पता नहीं क्यों जुड़ा नहीं तो मुझे कम से कम चिकित्सा पद्धति के विकास में ऐसे केंद्र की उपयोगिता जानना नहीं पड़ता. 

आज 2025 का 7 जून है. 4 जून को एक पत्र BHU बजट से निकला कि स्टाफ की जिम्मेदारी अब सितंबर तक University के registrar (बड़े बाबू) फाइनल करा दें क्योंकि बजट विभाग जवाब नहीं लगाएगा कोर्ट में कि किस स्थिति में स्टाफ को बंधक रखा गया है. (बिना किसी वेतन वृद्धि के 17 साल से बंधक ही होते हैं).

एक उपन्यास NFTHM के नाम पर लिखने की इच्छा है जो सभी अधिकारियों के कृत्य और बाबू लोगों की कलम को समझा सके समाज को...फिर कोई public गुमराह न हो शिक्षा और रिसर्च के नाम पर...लेकिन पन्ने का खर्च तो जनता को उठाना ही पड़ेगा...क्या आप लोग चाहते हैं कि आप उपन्यास NFTHM पढ़ने के लिए आपको मिले! डेट by date कहानी NFTHM की!

बताएँ आप लोग क्योंकि registrar साहब अब फाइल खोज रहे होंगे कि कौन सी फाइल उठाया जाए जिससे स्टाफ को वेतन वृद्धि न करनी हो और बंधक बनाए रखा जाए..

#ताला खोला हो सरकार!

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