गुरु पूर्णिमा

गुरु पूर्णिमा 
वाल्मीकि को दिया ज्ञान,अज्ञान निशा से जगा दिया। 
कलुष भरा था जीवन में,एक ही झटके में भगा दिया। 

अंगुलिमाल जैसे राक्षस भी,पाकर स्पर्श बन गए संत। 
पथ विहीन को मार्ग मिला,गुरु कृपा हुई उन पर अनंत। 

एक महामना की कृपा हुई,शबरी को प्रभु राम मिले। 
पवन सुत की कृपा मात्र से,तुलसी को श्रीराम मिले। 

माया मोह में फँसे हुए,अज्ञानी को भी मान मिला।  अनाड़ी राम बोला को, रत्नावली  से ज्ञान मिला। 

प्रशंसा जितनी मिले कम,संभव कहां बखान करना। 
मुश्किल उनका चरित्र वर्णन,असंभव गुणगान करना। 

करें प्रार्थना सच्चे मन से,जिन्होंने जीवन मँहकाया। 
अज्ञान नींद में पड़े थे,आकर जीवन ज्योति जलाया। 

कभी गुरुदेव कृपा हुई तो,राह मिलती बिल्कुल नई। 
भव सागर से पार जाते,मिले जो ज्ञान की ज्योति नई। 

आभार उनको  मेरा, जिसने जीवन दान दिया। 
अपने पावन स्पर्श देकर,दुःखों का संधान किया। 

- चंद्रकांत पांडेय, 
मुंबई (महाराष्ट्र)

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