विद्यालय मर्जर नीति, विद्यार्थियों की शिक्षा पर गहराता संकट : संध्या शाइन

विद्यालय मर्जर नीति, विद्यार्थियों की शिक्षा पर गहराता संकट :  संध्या शाइन

सोनभद्र : 

विचारणीय,
       जैसा कि आप जानते हैं कि विद्यालय बच्चों की शिक्षा एवं व्यक्तित्व निर्माण की प्रथम पाठशाला होती है। यह विशेषकर ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों में निवास करने वाले बच्चों के जीवन का एकमात्र शैक्षिक, सामाजिक और सांस्कृतिक मंच होता है, जहां से हमारे राष्ट्र की बुनियाद का निर्माण होता है।परंतु सरकार द्वारा लागू की जा रही विद्यालय मर्जर/पेयरिंग नीति (School Merger Policy) ने छात्रों के सामने कई नई चुनौतियाँ खड़ी कर दी हैं। यह नीति केवल संरचनात्मक बदलाव नहीं, बल्कि छात्रों के भविष्य, आत्मविश्वास और अवसरों को भी प्रभावित कर रही है।
आइए समझते हैं –
*क्या है विद्यालय मर्जर*?
विद्यालय मर्जर का तात्पर्य है — दो या दो से अधिक स्कूल को मिलाकर एक बड़ा स्कूल बना देना, जहाँ छात्र और संसाधन एकीकृत हों। हालाँकि इसका उद्देश्य संसाधनों का अधिकतम उपयोग है, पर विद्यार्थियों पर इसका असर गहराई से महसूस किया जा रहा है।
      *विद्यालय मर्जर से विद्यार्थियों पर पड़ने वाले प्रमुख प्रभाव*
1.🚶‍♂️लंबी दूरी तय करने की बाध्यता
• मर्ज के बाद कई बच्चों को 2–5 किमी दूर स्कूल जाना पड़ता है।
• यह 6–10 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए भारी होता है।
• अत्यधिक दूरी के कारण छात्र थक जाते हैं, और उनके पढ़ाई में मन नहीं लगता।
2. 👧 बालिका शिक्षा पर प्रतिकूल असर–
• दूरस्थ स्कूलों में सुरक्षा की कमी के कारण अभिभावक लड़कियों को स्कूल भेजने से कतराते हैं।
• इससे बालिका ड्रॉपआउट दर बढ़ती है, और लड़कियों की शिक्षा अधूरी रह जाती है।
3. 📉 स्कूल ड्रॉपआउट में वृद्धि
• कई छात्र विद्यालय तक पहुँचने में असमर्थ होकर पढ़ाई छोड़ देते हैं।
• कुछ बच्चे रास्ते में जोखिम उठाते हैं, तो कुछ घर में रहकर घरेलू कार्यों में लग जाते हैं।
4. 🏫 विद्यालय में भीड़ और अव्यवस्था
• मर्ज होने के बाद एक विद्यालय में छात्रों की संख्या अचानक बढ़ जाती है।
• इससे कक्षा में शोर, अव्यवस्था और अनुशासन की समस्या उत्पन्न होती है।
• व्यक्तिगत ध्यान की कमी से छात्र पिछड़ने लगते हैं।
5. 📚 शिक्षण की गुणवत्ता में गिरावट
• अधिक छात्रों और सीमित शिक्षकों के कारण शिक्षा का स्तर गिरता है।
• विद्यार्थी संदेह नहीं पूछ पाते, और सीखने की प्रक्रिया बाधित होती है।
6. 😟 मनोवैज्ञानिक दबाव और असुरक्षा की भावना
• छोटे गाँव के बच्चे नए और बड़े स्कूल में खुद को अकेला और असुरक्षित महसूस करते हैं।
• आत्मविश्वास की कमी, संकोच, और व्यवहार में परिवर्तन देखा गया है।
7. 🚫 सांस्कृतिक और भाषाई असमानता
• अलग-अलग गांवों के बच्चों के मेल से भाषा, बोली और सामाजिक व्यवहार में टकराव होता है।
• इससे छात्र मित्रता नहीं बना पाते, और एकाकीपन का शिकार हो जाते हैं।
8. ⚽ खेल, गतिविधियाँ और रचनात्मकता में गिरावट
• विद्यालयों के एकीकरण से सांस्कृतिक कार्यक्रम, खेल, बालसभा आदि गतिविधियाँ सीमित हो जाती हैं।
• इससे विद्यार्थियों की सर्वांगीण विकास प्रक्रिया प्रभावित होती है।
✅ *समाधान*:
1. विद्यालय मर्जर से पहले स्थानीय भौगोलिक स्थिति, छात्रों की उम्र और सामाजिक पृष्ठभूमि का मूल्यांकन अनिवार्य हो।
2. 6वीं तक के छात्रों के लिए हर गांव में स्थानीय विद्यालय बनाए रखें।
3. जहां मर्ज जरूरी हो, वहाँ छात्रों के लिए साइकिल, वैन या छात्रावास जैसी सुविधाएं दी जाएँ।
4. मर्ज विद्यालयों में पर्याप्त शिक्षक, कक्षाएं, शौचालय, पुस्तकालय और खेल मैदान सुनिश्चित किए जाएँ।
5. विद्यार्थियों की मानसिक और सामाजिक स्थिति को समझकर परामर्श (काउंसलिंग) की सुविधा दी जाए।
🔚 *निष्कर्ष*:
विद्यालय मर्जर एक प्रशासनिक निर्णय हो सकता है, लेकिन इसके प्रभाव बच्चों के जीवन और भविष्य पर पड़ते हैं। यदि शिक्षा सबका अधिकार है, तो उसे सुलभ, सुरक्षित और सम्मानजनक बनाना भी हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है। विद्यालय मर्जर से यदि छात्रों को दूरी, डर और अव्यवस्था ही मिले, तो यह नीति उद्देश्यहीन और हानिकारक सिद्ध होगी।
            – संध्या शाइन
 शिक्षिका, सामाजिक विचारिका एवं, स्वतंत्र लेखिका , ओबरा, सोनभद्र

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