खूब बही काव्य-सरिता लखनऊ में
लखनऊ :
अखिल भारतीय काव्य धारा, रामपुर, उत्तर प्रदेश की लखनऊ इकाई द्वारा एक कवि गोष्ठी का आयोजन इक्षुपुरी काॅलोनी में दिनांक 05.10.25 को किया गया। जिसकी अध्यक्षता-आदरणीय कृपा शंकर श्रीवास्तव ने की। मुख्य अतिथि - आदरणीय भूपेंद्र सिंह होश तथा विशिष्ट अतिथि क्रमशः आदरणीय सत्येन्द्र तिवारी , आदरणीय रमेश चंद्र श्रीवास्तव रचश्री तथा आदरणीय मालती राय शर्मा जी रहीं।
ज्ञात हो कि अखिल भारतीय काव्य धारा रामपुर की लखनऊ इकाई का गठन अप्रैल, 2025 में किया गया था। जिसके संस्थापक संरक्षक: जितेंद्र कमल आनंद, रामपुर उत्तर प्रदेश, संरक्षक लखनऊ से डाॅ. शिव भजन कमलेश, इकाई अध्यक्ष: श्री संजय कुमार श्रीवास्तव, लखनऊ, इकाई उपाध्यक्ष: डाॅ. अशोक गुलशन, इकाई महासचिव: श्रीमती रश्मि लहर, लखनऊ, इकाई सचिव: श्रीमती नमिता सचान सुंदर, लखनऊ, कोषाध्यक्ष : श्रीमती उपासना आनंद सक्सेना, उ प्र प्रतिनिधि: श्रीमती सुस्मिता सिंह काव्यमय, प्रांतीय प्रतिनिधि : श्रीमती ऋषी श्रीवास्तव, कार्यकारिणी सदस्य: श्री ओम प्रकाश श्रीवास्तव, कानपुर तथा मुख्य मीडिया प्रभारी: श्री प्रेम शंकर शास्त्री जी हैं। संस्था द्वारा प्रत्येक वर्ष २ कवि सम्मेलन/गोष्ठी की जाती हैं।
आज की गोष्ठी में कवि कवयित्रियों ने एक से बढ़कर एक रचनाऍं सुनाकर लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। कार्यक्रम का शुभारंभ अध्यक्ष तथा संरक्षक द्वारा माॅं शारदे की फोटो पर पुष्प अर्पण से हुआ । श्रीमती ऋषि श्रीवास्तव ने वाणी वंदना की। कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए रमेशचंद्र श्रीवास्तव जी ने ग़ज़ल- "सुलगे हैं कड़ी धूप में तब छांव मिली है। आराम के पल दुःख भरे लम्हात से निकले!" सुनाई। सत्येन्द्र तिवारी ने-"ये मैं नहीं बहारे पीकर आई हैं। मैं बहार की मदिर-मदिर मस्ती हूॅं।" सुनाकर सबका मन मोह लिया। भूपेन्द्र सिंह होश ने- "हवा में ये जो ख़ुशबू सी घुली मालूम होती है, मुझे ऐ माॅं तेरी मौज़ूदगी मालूम होती है" सुनाकर माहौल को भावुकता से भर दिया। संजय सागर ने -"मेरे ऑंगन की किलकारी मुझसे दूर गयी, मेरी ऑंखों की छवि न्यारी मुझसे दूर गयी " सुनाकर सबका मन द्रवित कर दिया। "वो चिड़िया जो साॅंझ ढले, रोज ही छत पर आती है, इकटक देखे सूरज को, ज्यूं रूठा मीत मनाती है" सुनाकर नमिता सचान सुंदर जी ने महफ़िल को एक नये भाव-रंग से भर दिया। "तुम्हारी याद में रोऊॅं कि तड़पूॅं या कि मर जाऊॅं, मुझे आया बहुत कुछ पर अदाकारी नहीं आई" सुनाकर ऋषि श्रीवास्तव ने वाहवाही बटोरी। स्वरिका कीर्ति ने जहाॅं "हम वहीं साथ में, हाथ ले हाथ में, भाग्य की कोई रेखा बनाते रहे। आज फिर तुम हमें याद आते रहे" पढ़कर सबको भावविभोर कर दिया वहीं बस्ती से पधारे कवि समीर तिवारी ने "रूप तुम्हारा विश्वनाथ के मंदिर सा, नयन तुम्हारे घाट बनारस लगते हैं" सुनाया तथा खूब तालियां बटोरीं तो "तुम जो अच्छे नही तो ये समझो, कोई अच्छा नही है दुनिया में। सुनाकर बस्ती की ही कवयित्री शिवा त्रिपाठी सरस जी ने गोष्ठी को ऊॅंचाई प्रदान की। आदरणीय मालती राय शर्मा, रश्मि लहर तथा शिवभजन कमलेश जी के गीतों ने कार्यक्रम को तालियों की गड़गड़ाहट से भर दिया। अंत में *ढाये हैं उसने मुझपे भले बेधड़क सितम* , *ताउम्र फिर भी होंगे न एहसान उसके कम* ,*नाम उसका मेरे सामने बेहतर अदब से लें* , *उस बेवफ़ा को दिल से अभी चाहते हैं हम* सुनाकर आदरणीय*'विश्वास'* लखनवी जी ने कार्यक्रम की समाप्ति की घोषणा की अनुमति दी।