मानव एक निवेदन तुमसे, नष्ट न कर वृक्षों का जीवन

मानव एक निवेदन तुमसे, नष्ट न कर वृक्षों का जीवन 
( विश्व पर्यावरण दिवस; पाँच जून पर विशेष लेख, अनुशीलनार्थ)
                                          लेखक- डॉक्टर डी आर विश्वकर्मा
बृक्षों के कारण प्रकृति की शोभा बढ़ती और पर्यावरण में चार चाँद लगता है।हम सभी प्राणियों को जीवनदायिनी आक्सीजन,अर्थात प्राण वायु भी,वृक्षों से ही मिलती है।तभी तो हमारे पूर्वज सदियों से,वृक्षों को देवतुल्य मानकर,उनकी पूजा आराधना करते आए हैं।कहते भी हैं कि “बृक्षे वसति देवता “हमारे ग्रंथों में वर्णित है कि “मूले ब्रह्मा,तने विष्णु,शाख़ायाम,महेश्वरम।पत्रम सब देवतानि,वृक्ष देवता नमस्तुते।।”वेदों की ऋचाएँ तो क्षिति,जल,पावक,गगन और समीर सभी तत्वों को देव तुल्य मानकर उनकी पूजा करती हैं।मित्रों! पर्यावरण प्रदूषण को देखते हुए आज इस भाव दशा की अत्यन्त ही आवश्यकता है।
भारत देश में,पूर्व से ही,हमारे पौराणिक आख्यानों में,हमारे आर्ष ऋषियों द्वारा वृक्षों के महत्व पर पर्याप्त प्रकाश डाला जा चुका है।
साथियों! हमारे शास्त्रों ने मुख्यतः दो प्रकार के कर्म का प्रतिपादन किया है।पहला इष्ट कर्म और दूसरा पूर्त कर्म।इष्ट कर्म वे कर्म होते हैं जिनकी विधि का वर्णन वेद मंत्रों से किया जाता है।जैसे पूजा,अनुष्ठान,यज्ञादि।पूर्त कर्म वे सामाजिक कर्म होते हैं जिससे समाज का कल्याण होता है।निःस्वार्थ भाव से समस्त लोकोपकार के कर्म करना और करवाना पूर्त कर्म के अन्तर्गत आता है।पूर्त कर्म प्राकृतिक दृष्टि से पर्यावरण को स्वच्छ शुद्ध बनाते हैं और मानव मात्र को धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष भी प्रदान करते हैं।आइए !कुछ खास पूर्त कर्मों पर ध्यान दें और उनसे होने वाले पुण्यों पर दृष्टिपात करें।
जलाशयों का निर्माण; हम सभी जानते हैं कि जल से ही अन्न की उपज होती है और मानव और जीवों की क्षुधा तृप्त होती है।इसीलिए जलाशयों के निर्माण और उसके जीर्णोद्धार से महान पुण्य की प्राप्ति होती है।हमारे मनीषियों ने तो अग्निहोत्र के तुल्य पुण्य की प्राप्ति जलाशयों के निर्माण और उसके मरम्मत से बताया है।
वृक्षारोपण से इस लोक में श्री वृद्धि होती है और परलोक में उत्तम लोकों की प्राप्ति होती है।क्योंकि वृक्ष प्राण वायु प्रदाता और गरलपायी शिव के समान माने गए हैं।
देवालयों के निर्माण और उसके जीर्णोद्धार से यज्ञ,दान,व्रत आदि से भी अधिक संतुष्टि मिलती है।
चरागाहों के निर्माण से गोदान के समतुल्य लाभ और पुण्य की प्राप्ति होती है।वैसे देखें तो आज हम पायेंगे कि चरागाह की जमीनों पर अतिक्रमण तेजी से बढ़ा है।आज चरागाह विलुप्त हो रहे हैं।शहरों में मल्टीस्टोरी बिल्डिंग,व्यवसायिक प्रतिष्ठान,बड़ी बड़ी अट्टालिकाएं, आवास गृह, माल आदि बन रहें हैं और धरती पर कंकरीट के जंगल बनते जा रहे हैं,ऐसे में गोचर भूमि और चरागाह छोड़ना कितना पुण्य का काम होगा इसे हम सभी समझ सकते हैं।
आज व्यवसायिक कारणों से देश विदेश के भू भागों में वृक्षों की कटाई अंधाधुन्ध जारी है;जिससे पर्यावरण संतुलन बिगड़ने लगा है।प्राकृतिक आपदाएं,बेमौसम बरसात,जल वायु परिवर्तन, जहरीला वातावरण, भूस्खलन, अनावृष्टि इत्यादि की समस्याएं गंभीर होने लगी हैं; जिससे आज पूरी दुनिया व मानवता ख़तरे में आ गई है।हम सभी की पारिस्थिकी भी गड़बड़ाने लगी है जिससे क्लाइमेट (मौसम) में बदलाव साफ़ दिखाई देने लगा है।ग्लोबल वार्मिंग एसिड रेन ओज़ोन डिप्लीशन इमिशन पर कैपिटा कार्बन उत्सर्जन क्लाइमेट चेंज इत्यादि विपत्तियों की चर्चा हमारे पर्यावरण वैज्ञानिक करने लगे हैं।
वास्तव में हमे शुद्ध वायु ,धूप, पानी, शांति और शीतलता वृक्षों से प्राप्त होता है। वृक्ष नष्ट होते हैं तो, जल नष्ट होता है, मत्स्य और जीवन नष्ट होता है, फसलें नष्ट होती हैं,पशु नष्ट होते हैं, उर्वरा विदा हो जाती है और तब एक से बढ़कर एक प्रेत प्रकट होने लगते हैं।जैसे अकाल,बाढ़,आग,महामारी इत्यादि।
वृक्षों से हम सभी को चारा, ईधन, इमारती लकड़ियाँ, औषधि, रेशे फल, फूल, लघु प्रकाष्ठ, उद्योगों हेतु कच्चे माल इत्यादि प्राप्त होता है।यह तो वृक्षों से प्राप्त होने वाले प्रत्यक्ष लाभ कहे जाते हैं।मित्रों वृक्षों से हमें परोक्ष लाभ भी होते हैं,जिसमें ताप क्रम का नियंत्रण,वर्षा की निरंतरता,कार्बन डाई ऑक्साइड को प्राण दायिनी ऑक्सीजन में परिवर्तित करना, भूमि के कटाव को रोकना,भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाना, तेज हवाओं से फसल सुरक्षा,शुष्क हवा को आर्द्र हवा में बदलना, खेत की नमी में वृद्धि करना,मित्र जीवों के संरक्षण में सहयोगी होना,आदि कार्य भी वृक्ष करते हैं जो वैज्ञानिक अनुसंधानों से अब सिद्ध हो चुका है।
वृक्षों का असर हमारे मानसिक सेहत पर ही नहीं पड़ता बल्कि ये हमारे शारीरिक स्वास्थ्य पर भी असर डालते हैं। घर में लगे पेड़ पौधों से रूखी त्वचा, जुकाम,गले की खरास,सूखी ख़ासी आदि की परेशानी कम होती है।पौधे रक्त चाप नियंत्रित रखने में भी सहायक होते हैं।तनाव कम करने एवं हवा को शुद्ध करने के साथ साथ फेफड़ों की कार्य क्षमता बढ़ाते हैं।
वृक्ष फ़ार्माल्डीहायिड जैसे प्रदूषण कारी तत्वों को अवशोषित करते हैं जो अस्थमा,एलर्जी का कारण बनता है।कारों से निकलने वाले बेंजिन जो सर चकराने,बेचैनी व सिरदर्द का दोषी होता है;को दूर करने में मददगार होते हैं। हवा प्रदूषक जायलीन, टालवीन, ट्राइक्लोथाइलीन को दूर करने में मदद करते हैं। वृक्ष कार्बन मोनो आक्साइड और सल्फर डाई ऑक्साइड को सोखने में सक्षम होते हैं। घरों में लगाये गए तुलसी के पौधे २४ घंटे में २० घंटे आक्सीजन देता है। एलोवेरा का पौधा ऐसीटोन,अमोनिया व इथायिल एसिटेट समेत कई तरह के टॉक्सिन को सोख लेता है।वृक्षों की भूमिका शोर कम करने में भी खूब होती है।यह वातावरण के शोर को कम करने में मदद देते हैं।वृक्ष ख़ुद कीटों से बचाने के लिए फ़ाइटॉनसाइड रसायन हवा में छोड़ते हैं जिसमें एंटीबैक्टीरियल खूबी होती है,जब साँस के ज़रिए यह रसायन हमारे शरीर में जाता है तो हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।यह भी कहा जाता है कि वह ज़मीन जल्दी बिकती है जहाँ पेड़ पौधे होते हैं।
साथियों!वृक्षों की महत्ता को देखते हुए ही हम नक्षत्र वाटिका,राशि वाटिका नव ग्रह वाटिका, अशोक वाटिका, धन्वन्तरि वाटिका और पंचवटी वाटिका का निर्माण अपने घरों एवं आस पास करते हैं जिससे हमें तमाम तरह की औषधियाँ मिलती हैं तथा शांति सुख समृद्धि और ख़ुशहाली प्राप्त होती है।

लेखक: पूर्व जिला विकास अधिकारी,मोटिवेशनल स्पीकर,ऑल इण्डिया रेडियो का नियमित वार्ताकार,वरिष्ठ साहित्यकार एवं प्रशिक्षक,कई पुस्तकों का प्रणयन कर्ता,कई राज्य स्तरीय सम्मानों से विभूषित,शिक्षा विद है;जिसके नाम से काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के शिक्षा संकाय में शोध छात्रों को डॉक्टर डी आर विश्वकर्मा बेस्ट पेपर अवार्ड भी दिया जाता है।

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