विजय पताका लहराओ

 विजय पताका लहराओ
उठो जवानो, बजा दो बिगुल,
अब रणभूमि में आग जले।
शत्रु को दिखा दो शक्ति हमारी,
भारत मां की शान पले।

धरती मां ने दी है हमको
बलिदानों की अमर कहानी,
शेरों के बेटे हैं, हम सब
ना झुकने वाली है जवानी।

तलवारों की धार से चमके,
वीर हमारे रण में कूदे।
एक-एक बूंद लहू की बोले,
“अब भारत को कोई न लूटे।”

लहराओ विजय पताका ऐसी,
कि आकाश गर्जना करे।
स्वतंत्रता का गीत गूंजे,
हर भारतवासी नमन करे।

तोपों की गड़गड़ाहट गाए,
सिंह गर्जना, रण में छाए।
सीना तान खड़े हैं सैनिक,
शहीद हो जाएं पर वचन निभाए।

चंद्रशेखर की ज्वाला जलती,
भगत सिंह की हुंकार है,
सुभाष, बिस्मिल, अशफाक की
रग-रग में अंगार है।

हम वतन के प्रहरी बनकर,
हर सीमा पर खड़े रहेंगे,
गोलियों से खेलेंगे हंसकर,
मां के चरणों में ढहेंगे।

जब तक ये सूरज चांद रहेगा,
जब तक गगन में तारे हैं,
भारत मां की जय के नारे,
हमारे प्राणों में प्यारे हैं।

जय जवान, जय बलिदानी,
जय भारत माता की जय।
रक्त की हर बूंद पुकारे —
"भारत अजर, अमर रहे 
और अमर रहे ये जय!"


वरिष्ठ कवि एवं साहित्यकार 
डॉ. विपुल कुमार भवालिया 'विवान'
अलवर, राजस्थान

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