विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास में ; अभिभावकों की भूमिका : डॉक्टर दयाराम विश्वकर्मा

विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास में ; अभिभावकों की भूमिका : डॉक्टर दयाराम विश्वकर्मा
                                               
कहते हैं कि बच्चे ही किसी राष्ट्र,देश,परिवार की निधि व समाज की मुस्कुराहट होते हैं।बच्चे ही राष्ट्र की वे कलियाँ हैं जो विकसित होकर फूल बनते हैं और कालान्तर में अपने ज्ञान,दिव्य गुणों और उज्ज्वल चरित्र से,श्रम से,त्याग और पुरुषार्थ से अपने परिवार समाज व देश को महकाते हैं।
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि शिक्षा ही किसी भी परिवार समाज और राष्ट्र के उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। बच्चों को,अभिभावकों द्वारा अच्छी से अच्छी शिक्षा देनी चाहिए और उन्हें बचपन से ही अच्छे संस्कार भी सिखाने चाहिए, इसीलिए मनीषी गण कहते हैं कि बच्चों को शिक्षित ही नहीं; संस्कारित भी बनाना हर अभिभावकों की जिम्मेदारी है।
संस्कृत में एक श्लोक आता है-

माता शत्रु, पिता वैरी, येन बालो न पठित:।
न शोभते सभा मध्ये, हंस मध्ये, बको यथा ।।
अर्थात् माता शत्रु और पिता वैरी होता है जिसने अपने बच्चों को नहीं पढ़ाया।अनपढ़ बच्चे किसी सभा में वैसे ही शोभा पाते हैं, जैसे-हंसों के मध्य में बगुला। यानि अनपढ़ों की दशा यही होती है।
वास्तव में, शिक्षा का उद्देश्य यह होना चाहिए कि ऐसी पीढ़ी तैयार हो, जो शारीरिक, मानसिक, प्राणिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से पूर्ण विकसित हो और जीवन की तमाम चुनौतियों का सामना सफलतापूर्वक कर सकने में, सक्षम हो सके;यदि अभिभावक गण अपने पाल्यों को अच्छी शिक्षा देंगे तो इससे समाज की कुरीतियों, शोषण व अन्याय से भी मुक्ति मिलेगी और समाज भी समरस, समुन्नत और सुसंस्कृत बनेगा;साथ ही मानवतावादी शक्तियों में अभिवृद्धि होगी।
मेरा विचार है कि-
If we want the happiness everywhere then the children of the all family  should be educated;because the destiny of a family depends on children.
अब आइये कुछ विद्वानों के शिक्षा के सन्दर्भ में विचार पर मनन चिंतन करें।स्वामी विवेकानन्द ने कहा है कि-
मानव में गुप्त रूप से जो शक्तियां विद्यमान है;उसका प्रकटीकरण ही, शिक्षा का उद्देश्य होना चाहिये। वे बच्चों के Power of concentration पर ध्यान केंद्रित करने को बल देते थे। वे ये भी कहते थे कि….Football is more necessary than Gita. उनकी सोच थी कि स्वस्थ्य शरीर में ही स्वथ्य मस्तिष्क का विकास होता है, इसीलिए बच्चों के विकास में फुटबॉल की भूमिका अहम है।
दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला का विचार है कि- Education is powerful weapon, which can be used to change the world.
शिक्षा एक ऐसा शक्तिशाली हथियार है, जिसका उपयोग दुनिया को बदलने में किया जा सकता है।
अलवर्ट आइंस्टीन का कहना था कि-Education is not the learning of facts but training of mind to think.अर्थात् शिक्षा तथ्यों को सिखना नहीं है; बल्कि यह मस्तिष्क को सोचने समझने के योग्य बनाना है।
वैसे भी कहते हैं कि Education is an instrument to change the socio economic condition of a society as well as an individual.
शिक्षा एक ऐसा यंत्र है जिसे किसी समाज या व्यक्ति के सामाजिक/आर्थिक दशा को बदलने में उपयोग किया जा सकता है ।
डॉक्टर भीम राम अंबेडकर कहते थे कि शिक्षा वह शेरनी का दूध है,जो पियेगा वह दहाड़ेगा।
अब आइये; भारतीय मनीषी शिक्षा को, किस रूप में देखती है पर दृष्टिपात करें। विद्यार्थी दो शब्दों के मेल से बना है, विद्या +अर्थी यानि विद्या की चाह रखने वाला या विद्या का इच्छुक।शास्त्रों में विद्यार्थी के पाँच लक्षण बताए गए हैं।
कागचेष्टा, बको ध्यानम्, श्वान निद्रा तथैव च।
अल्पाहारी, गृहत्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणम ।।
मित्रों। हमारे मनीषियों ने कहा है कि शिक्षा मानव के जीवन को सत्यम्, शिवम् और सुन्दरम् से विभूषित करती है, जिससे व्यक्ति के चरित्र में उज्ज्वलता, चिंतन में उत्कृष्टता और व्यवहार में उदात्तता का भाव पैदा होता है। वास्तव में शिक्षा मानवीय अंतःकरण का ऐसा श्रृंगार है; जिससे भावनाएं और संवेदनाएँ पैदा होती हैं।
कहते हैं कि- विद्या ददाति विनयम अर्थात् विद्या से विनय आता है। साथ यह भी कहा गया है कि- नास्ति विद्या समम चक्षु:, अर्थात् विद्या के समान कोई आँख नहीं।
विद्या गुरुनाम गुरु: “अर्थात् विद्या गुरुओं की भी गुरु होती है।विद्या की महत्ता को देखते हुए यह भी कहते हैं कि विद्या विहिनः पशु अर्थात् विद्या के बिना;मनुष्य पशु होता है।
नीति शास्त्र में वर्णित है कि-किम किम न साधयति कल्पलतेव विद्या।कहने का तात्पर्य कि विद्या से सभी अभीष्ट की प्राप्ति संभव है। विद्या कल्पलता के समान होती है।
विद्या जीवन यात्रा में माता के समान रक्षा करती है। पिता के समान हितकारी कार्यों में नियुक्त करती है।पत्नी के समान खेद को दूर कर, आनन्दित और प्रफुल्लित करती है, यह चारों दिशाओं में कीर्ति का विस्तार कर, धन-धान्य से परिपूर्ण करती है।
विद्या को ऐसा धन कहा गया है कि-
न चौर्य हार्यम न च भातृ भाज्यम,न राज्य हार्यम,न च भारकारि।
व्यये कृते वर्धत येव नित्यम, विद्या धनम सर्व धनम् प्रधानम् ।।

मतलब कि विद्या रूपी धन को न चोर चुरा सकते हैं, न राज्य इसे छीन सकता है न यह भार स्वरूप होता है। विद्या को जितना खर्च किया जाता है वह नित्य प्रति बढ़ती है। इसीलिए विद्या रूपी धन को सभी प्रकार के धनों में प्रधान धन माना गया है।
एक और श्लोक में विद्या के अहमियत को रेखांकित किया गया है…..
विद्या नाम नरस्य कीर्तिरतुला, भाग्यक्षये चश्रया।
धेनुकामदुधा, रतिश्च विरहे, नेत्र त्रितीयम च सा।।
सत्कारयतनम कुलस्य महिमा,रत्नम्बिना भूषणम्।
तस्मादनमुपेक्ष्य सर्व विषयं विद्याधिकारम कुरु ।।

कहने का अर्थ विद्या नर की कीर्ति है।यह अनुपम कृति है। भाग्य के नाश होने पर आश्रय देती है। यह कामधेनु के समान होती है । विरह में रति के समान होती है। यह संस्कार का मंदिर, कुल की महिमा और बिना रत्न के आभूषण मानी जाती है। इसीलिए कहते हैं कि सभी विषयों को छोड़कर विद्या का अधिकार प्राप्त करना चाहिए।
ईशोपनिषद में वर्णित है कि-“विद्ययामृतमश्नुते” यानि विद्या से अमृत, मोक्ष, अमर व दिव्य जीवन की प्राप्ति होती है।
अब आइये! समझे अभिभावक अपने बच्चों पर किस प्रकार ध्यान दें कि उनका बच्चा पढ़ने के साथ- साथ अपना सर्वांगीण विकास कर सके।साथियों विद्यार्थियों के जीवन में तीन लोग ही बदलाव कर सकते हैं एक विद्यार्थियों के शिक्षक तथा उनके माता और पिता।
सर्व प्रथम माता ही बच्चों की प्रथम पाठशाला कही गई है, यदि माँ चाह ले तो बच्चा बिगड़ ही नहीं सकता।माएँ ही बच्चों में संस्कार डालती हैं।अभिभावकों को अपने बच्चों को पीटना नहीं चाहिए इससे बच्चे अपनी प्रतिभा खो देते हैं। उन्हें चिढ़ाना भी नहीं चाहिए अन्यथा वे प्रयास करना बंद कर देते हैं। बच्चों का उपहास भी नहीं उड़ाना चाहिए नहीं तो वे आत्म विश्वास खो देते हैं। बच्चों पर भरोसा करें उनकी उपलब्धि पर प्रसंशा करें और उनकी संगत पर सतत ध्यान दें, क्योंकि कहते हैं कि “संगत से गुण होत है,  संगत से गुण जात ।। “ मतलब संगत से ही बच्चे गुण ग्रहण करते हैं और संगत से ही वे अवगुणी होते हैं।
माता पिता बच्चों को ब्रह्ममुहूर्त में जगाकर पढ़ना सिखाए क्योंकि अमृतबेला में धारणा शक्ति अधिक होती है और ब्रह्म मुहूर्त में पढ़ी हुई चीज़ें जल्दी याद हो जाती हैं।
अंग्रेजी में भी कहावत है कि “Early to bed and early to rise,makes a man healthy wealthy and wise.”
अर्थात् जल्दी सोने और जल्दी उठने से आदमी स्वस्थ्य, धनवान और बुद्धिमान बनता है।
अभिभावकों को बच्चों को बचपन से ही मेहनत करने की आदत डलवानी चाहिए। उन्हें शाकाहारी बनाना चाहिए क्योंकि शाकाहार से व्यक्ति में सात्विक वृत्तियाँ आती हैं, व्यक्ति क्रोध और चिड़चिड़ापन से दूर होता है।
बच्चों को गुप्त रूप से किसी की बात न सुनने की भी हिदायत देनी चाहिए,और किसी के साथ किए गए समझौते को न तोड़ने की शिक्षा देनी चाहिए।
बच्चों को राह चलते पेड़ पौधों को विनष्ट न करने की शिक्षा देनी चाहिए ।
बच्चों को सत्य बोलने व ईमानदार बनने की आदत बचपन से ही डालनी चाहिए ।
बच्चों को किसी भी जीव की हत्या न करने की शिक्षा देनी चाहिए।
किसी की कोई चीज न चुराने की शिक्षा सदैव देनी चाहिए।
बच्चों को दूसरों की बहन बेटियों को अपनी बहन बेटी समझने की शिक्षा देनी चाहिए।
दूसरों के धन दौलत को मिट्टी का ढेला समझने की गहराई से शिक्षा देनी चाहिए।
सभी के साथ अपने आत्मवत् जैसा व्यवहार करना सीखाना चाहिए।
आपस में लड़ाई झगड़ा न करने की सख़्त हिदायत देनी चाहिए।
बचपन से ही बच्चों को मादक पदार्थों से दूर रखने की शिक्षा देनी चाहिए।
बच्चों से अभिभावकों को पान बीड़ी/सिगरेट इत्यादि समान बाजार से न मगवाने चाहिए।
उनके समक्ष कोई मादक पदार्थ का सेवन अभिभावकों को नहीं करना चाहिए।
कोई खाद्य पदार्थ मिल बांट कर खाने की आदत डालनी चाहिए।
नकल न करने की सलाह भी बच्चों को दी जानी चाहिये। चाहे वे भले ही कम अंक प्राप्त करें। उनकी सराहना की जानी चाहिए।
बच्चों को मुख से नाख़ून न काटने, कंकड़ ढेले न मारने व सर न खुजलाने तथा सर के बाल न तोड़ने की आदत भी डालनी चाहिए। किसी अंग को अनावश्यक न हिलाने की शिक्षा देनी चाहिए।
संकट के समय दूसरों की सेवा करने की सलाह देनी चाहिए।
बड़ो को प्रणाम व अपने से छोटों को नमस्कार करने की आदत डालनी चाहिए।
बूढ़े और बीमार व्यक्ति की सेवा के गुण बचपन से ही बच्चों में डालनी चाहिए।
सभी के साथ प्रेम सद्भाव से रहने की हिदायत देनी चाहिए।
अपने देश के प्रति देश भक्ति के गुण बचपन से ही सिखाने चाहिए । उपर्युक्त गुणों से बच्चे भविष्य में एक नेक इंसान व संस्कारवान बनेंगे और देश समाज के लिए एक सभ्य ईमानदार नागरिक साबित होंगे ।

लेखक; पूर्व अधिकारी, शिक्षाविद, मोटिवेशनल स्पीकर, कई राज्य स्तरीय सम्मानों से सम्मानित वरिष्ठ साहित्यकार एवं वरिष्ठ प्रशिक्षक है।

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