: डॉक्टर डी आर विश्वकर्मा
ध्यान मन को शांत और एकाग्रता प्रदान करने का एक साधन है।योग साधनाओं में,यम,नियम,आसन,प्राणायाम, धारणा,ध्यान,समाधि,बंध एवं मुद्रा,षट्कर्म,युक्ताहार,मंत्र जप युक्त कर्म आदि का अभ्यास किया जाता है।पतंजलि के अष्टांग योग का छठवाँ अंग ध्यान है।ध्यान आध्यात्मिक अनुशासन एवं सूक्ष्म विज्ञान पर आधारित ज्ञान है;जो मन और शरीर के बीच सामंजस्य स्थापित करता है।परमात्म शक्ति के प्रति आत्म समर्पण और उस परा शक्ति का आत्म सत्ता में अवतरण ही ध्यान का मुख्य प्रयोजन होता है।ध्यान को प्राप्त कर लेने के बाद यम और नियम स्वतः प्राप्त होने लगता है।ध्यान वह विधा है,जिससे आज की तमाम समस्याओं,बीमारियों को दूर किया जा सकता है।ध्यान के द्वारा हम अधिक ऊर्जा प्राप्त कर सकते हैं।कुछ समय का ध्यान “,हमें घंटों की नींद के समान आराम स्फूर्ति व ताज़गी प्रदान करता है।ध्यान से हम अधिक क्रियाशील,तेज निर्णय लेने की क्षमता का अभूतपूर्व विकास कर पाने में सक्षम होते हैं,इससे हमे चुनौती पूर्ण कार्य करने के साथ साथ साहस भी प्राप्त होता है।ध्यान,आध्यात्मिक दृष्टि से ही नहीं,बल्कि स्वास्थ्य की दृष्टि से भी,बहुत उपयोगी है।ध्यान से, निषेधात्मक भाव कम होते हैं,विधायक भाव,जाग्रत होते हैं।ध्यान एक ऐसी विधा है,जो हमे भीड़ से हटकर स्वम् की श्रेष्ठताओं से पहचान कराती है।हममे पुरुषार्थ कराने का जज्बा जगाती है।
ध्यान का प्रयोजन,व्यक्ति में,आत्म विश्वास पैदा करना, समस्याओं से मुक्ति का मार्ग खोजना है।इससे भावना प्रबल बनती है।ध्यान से,हमारे शरीर के भीतर सुषुप्त शक्तियां जागृत की जा सकती हैं।शक्ति का बोध,जागरण की साधना और उसका सम्यक दिशा में नियोजन,इतना विवेक जग जाय तो समझो सफलता का स्रोत खुल गया और जीवन की समस्याओं से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त हो गया।ध्यान के नियमित अभ्यास से, ईर्ष्या व द्वेष का भाव समाप्त होने लगता है।ध्यान से तनाव चिंता कम होती है।ध्यान से, मन की एकाग्रता बढ़ती है।मानसिक स्वास्थ्य बेहतर होने लगता है।शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत बनती है।रक्त चाप नियन्त्रित होती है।ध्यान से,संज्ञानात्मक कौशल को बढ़ावा मिलता है।ध्यान से, चेतना का विस्तार होता है।जीवन में आनंद की अनुभूति होने लगती है।वास्तव में ध्यान दिव्य यात्रा पर चलने का मार्ग है।ध्यान में आत्मा से जुड़ना ल,शब्दों से परे,परम चैतन्य की अवस्था होती है।ध्यान की परिपक्वावस्था का नाम ही समाधि है।
हम जानते हैं कि मन की चंचलता मस्तिष्क की दिव्य क्षमताओं को निरर्थक कर देती है।प्रवीणता तो तभी आती है जब एकाग्रता आए।मन की चंचलता को रोकने और उसको स्थिर करने का अत्यन्त ही महत्व होता है।यदि मन को कोई साधक 03 मिनट तक स्थिर कर ले तो वह शून्यावस्था में पहुँच जाता है।यही समाधि है।
समाधि मुख्यतः दो प्रकार की होती है।पहला सविकल्प समाधि-सविकल्प समाधि का तात्पर्य उस स्थिति से है जिसमें आवश्यक विचार मनः क्षेत्र में अपना कार्य करते रहते हैं।मन की एकाग्रता को सविकल्प समाधि कहते हैं।
निर्विकल्प समाधि-एक बिन्दु पर चिंतन का सिमट कर स्थिर होना इसके अन्तर्गत आता है।मन की स्थिरता को निर्विकल्प समाधि कहते हैं।
मन की स्थिरता मन के संकल्प शक्ति से उत्पन्न की जाती है इससे शरीर और मन को विश्राम मिलता है।आन्तरिक थकान दूर होती है।जैसे निद्रा से जगने पर नई चेतना और नई स्फूर्ति का अनुभव होता है,वैसे ही मन की स्थिरता का लाभ मिलता है। सम्प्रज्ञता की स्थिति तब होती है जब चित्त और मन से इच्छा को त्याग देता है और मन को एकाग्र करना है।असम्प्रज्ञात की स्थिति में व्यक्ति को कुछ भान और ज्ञान नहीं रहता।मन जिसका ध्यान कर रहा होता है,उसके अतिरिक्त किसी दूसरी ओर उसका ध्यान नहीं जाता,इसे अमनी दशा भी कहा जाता है।
आइये! समाधि के कुल चार विस्तृत प्रकारों पर ध्यान केन्द्रित करें।
वितर्कानुगत समाधि-किसी स्थूल बस्तु या प्रकृति पंच महाभूतों की अर्चना करने में मन को उसी में लीन कर लेना।
विचारानुगत समाधि-स्थूल पदार्थों पर मन एकाग्र करने के बाद,छोटे रूप,छोटे रस,गंध,शब्द आदि भावनात्मक विचारों के मध्य से जो समाधि होती है,वह विचारानुगत अथवा सविचार समाधि कहलाती है।
आनन्दानुगत समाधि-इसमें विचार भी शून्य हो जाते हैं,केवल आनंद ही आनंद आता है।
अस्मितानुगत समाधि-अस्मित;अहंकार को कहते हैं,इस प्रकार की समाधि में अहंकार भी नष्ट हो जाता है।इसमें अपनेपन का भाव रह जाना और सब भाव मिट जाना है।इसे अस्मित समाधि कहते हैं।यह उच्च समाधि कहलाती है।
सचमुच अगर हम सभी केवल और केवल 20 मिनट का नियमित ध्यान करते हैं तो अनेक लाभ प्राप्त होते हैंऔर हमे अनेक दुश्चिंताओं से निजात मिल जाता है।
लेखक,पूर्व जिला विकास अधिकारी,मोटिवेशनल स्पीकर,वरिष्ठ प्रशिक्षक,ऑल इण्डिया रेडियो वाराणसी का नियमित वार्ताकार,कई पुस्तकों का प्रणयनकर्ता,कई राज्य स्तरीय सम्मानों से विभूषित,वरिष्ठ साहित्यकार है,जिसके नाम से काशी हिंदू विश्वविद्यालय के शिक्षा संकाय में शोध छात्रों को डॉक्टर डी आर विश्वकर्मा बेस्ट पेपर अवार्ड भी दिया जाता है।